Lok geet

जय-जय भै‍रवि

जय-जय भै‍रवि असुर भयाउनि

पशुपति भामिनी माया

सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि

अनुगति गति तुअ पाया


वासर रैनि सबासन शोभित

चरण चन्‍द्रमणि चूड़ा

कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल

कतओ उगिलि कएल कूड़ा


सामर बरन नयन अनुरंजित

जलद जोग फुलकोका

कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि

लिधुर फेन उठ फोंका


घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय

हन-हन कर तुअ काता

विद्यापति कवि तुअ पद सेवक

पुत्र बिसरू जनि माता

गौरा तोर अंगना

गौरा तोर अंगना।

बर अजगुत देखल तोर अंगना।


एक दिस बाघ सिंह करे हुलना।

दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना॥

हे गौरा तोर...


कार्तिक गणपति दुई चेंगना।

एक चढथि मोर एक मुसना॥

हे गौर तोर...


पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना।

सम्पति मध्य देखल भांग घोटना॥

हे गौरा तोर...


खेती न पथारि शिव गुजर कोना।

मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना॥

हे गौरा तोर ।


भनहि विद्यापति सुनु उगना।

दरिद्र हरन करू धएल सरना॥

हे हर मन द करहुँ प्रतिपाल

हे हर मन द करहुँ प्रतिपाल,

सब बिधि बन्धलहुँ माया जाल।

हे हर मन।


सब दिन रहलहुँ अनके आस,

अब हम जायब केकरा पास।

हे हर मन।


बीतल बयस तीन पल मोरा,

धयल शरण शिव मापन तोरा।

हे हर मन।

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